ज्योतिष

शुक्रवार पूजा में करें ये काम, साधक को होगी समस्त सुखों की प्राप्ति

सप्ताह का हर दिन किसी न किसी देवी देवता की पूजा को समर्पित होता हैं वही शुक्रवार का दिन देवी आराधना के लिए उत्तम माना जाता हैं। इस दिन भक्त देवी मां को प्रसन्न करने के लिए उनकी पूजा आरती और व्रत करते हैं मान्यता है कि ऐसा करने से जीवन के सभी कष्टों का अंत हो जाता हैं।

 

लेकिन अगर आप भौतिक सुखों की इच्छा रखते हैं तो हर शुक्रवार के दिन नियमित रूप से सप्तशती न्यास: का पाठ जरूर करें इस चमत्कारी पाठ से साधक को समस्त सुखों की प्राप्ति होती है वही जीवन के दुख दर्द भी दूर हो जाते हैं तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं ये शक्तिशाली पाठ।

॥ सप्तशतीन्यासः ॥

तदनन्तर सप्तशती के विनियोग, न्यास और ध्यान करने चाहिये। न्यास की प्रणाली पूर्ववत् है-

॥ विनियोगः ॥

प्रथममध्यमोत्तरचरित्राणां ब्रह्मविष्णुरुद्रा ऋषयः,श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः, गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्‍छन्दांसि, नन्दाशाकम्भरीभीमाः शक्तयः,रक्तदन्तिकादुर्गाभ्रामर्यो बीजानि, अग्निवायुसूर्यास्तत्त्वानि, ऋग्यजुःसामवेदा ध्यानानि, सकलकामनासिद्धये श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।

ॐ खड्‌गिनी शूलिनी घोरा गदिनी चक्रिणी तथा।
शङ्खिनी चापिनी बाणभुशुण्डीपरिघायुधा॥ ॥अङ्गुष्ठाभ्यां नमः॥

ॐ शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके।
घण्टास्वनेन नः पाहि चापज्यानिःस्वनेन च॥ ॥तर्जनीभ्यां नमः॥

ॐ प्राच्यां रक्ष प्रतीच्यां च चण्डिके रक्ष दक्षिणे।
भ्रामणेनात्मशूलस्य उत्तरस्यां तथेश्‍वरि॥ ॥ मध्यमाभ्यां नमः॥

ॐ सौम्यानि यानि रूपाणि त्रैलोक्ये विचरन्ति ते।
यानि चात्यर्थघोराणि तै रक्षास्मांस्तथा भुवम्॥ ॥ अनामिकाभ्यां नमः॥

ॐ खड्गशूलगदादीनि यानि चास्त्राणि तेऽम्बिके।
करपल्लवसङ्गीनि तैरस्मान् रक्ष सर्वतः॥ ॥कनिष्ठिकाभ्यां नमः॥

ॐ सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते॥ ॥करतलकरपृष्ठाभ्यां॥

ॐ खड्‌गिनी शूलिनी घोरा॰ – हृदयाय नमः।
ॐ शूलेन पाहि नो देवि॰ – शिरसे स्वाहा।
ॐ प्राच्यां रक्ष प्रतीच्यां च॰ – शिखायै वषट्।
ॐ सौम्यानि यानि रूपाणि॰ – कवचाय हुम्।
ॐ खड्गशूलगदादीनि॰ – नेत्रत्रयाय वौषट्।
ॐ सर्वस्वरूपे सर्वेशे॰ – अस्त्राय फट्।

॥ ध्यानम् ॥

ॐ विद्युद्दामसमप्रभां मृगपतिस्कन्धस्थितां भीषणां
कन्याभिः करवालखेटविलसद्धस्ताभिरासेविताम्।
हस्तैश्‍चक्रगदासिखेटविशिखांश्‍चापं गुणं तर्जनीं
बिभ्राणामनलात्मिकां शशिधरां दुर्गां त्रिनेत्रां भजे॥

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